मजदूर का जीवन

हमारे समाज में मजदूरों के ऊपर सभी प्रकार की आर्थिक उन्नति टिकी होती है,आज हम चाहे जितना अधिक विकास की बात करें लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह श्रमिक वर्ग ही है जिसके सहारे हम विकास के पथ पर निरंतर अग्रसर हैं।आज के मशीन एवं तकनीकी युग में भी मजबूर की महत्ता कम नहीं हुई है हम जिस घर में रहते हैं,विभिन्न उद्योग,कृषि,पुल निर्माण,सड़क निर्माण आदि अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिन क्रियाकलापों में मजदूरों के श्रम का योगदान महत्वपूर्ण होता है।एक मजदूर ही कड़ी मेहनत करके हमारे छोटे से घर को आलीशान बंगले या कोठी में तब्दील करने की ताकत रखता है क्योंकि वह अपना श्रम बेचता है बदले में उसे केवल न्यूनतम मजदूरी प्राप्त होती है।एक मजदूर का जीवन सिर्फ अपने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाने में निकल जाता है।
मजदूर का जीवन यापन दैनिक मजदूरी के आधार पर होता है उसके शरीर में जब तक ताकत होती है वह मजदूरी करके अपना व अपने परिवार का पेट पालता है।आज 1 मई श्रमिक दिवस के अवसर पर मैन कुछ मजदूरों से बात की जो दिन भर काम करने के पश्चात फूटपाथ पर ही लकड़ियां जलाकर अपने लिए रोटियां बनाते हुए पाए जाते हैं।उनसे बात करके मैंने यह जानने का प्रयास किया की उनके जीवन में किस तरह की कठिनाइयां हैं।सबसे पहले मैंने एक मजदूर जिसका नाम परशुराम था उससे मैंने पूछा परशुराम कौन थे जानते हो तो वह इससे भी अनभिज्ञ था।
मैंने उससे पूछा कहां के रहने वाले हो तो उसने बताया कि वह हरदोई जिले का रहने वाला है,फिर मैंने पूछा कल 1 मई श्रमिक दिवस के बारे में क्या जानते हो तो उसने बताया कि वह नहीं जानता कि कल श्रमिक दिवस है। बातों के दौरान मैंने उससे यह जानना चाहा कि वह लोग कैसे फुटपाथ पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उसने बताया कि यहाँ हम सड़क के किनारे खाना बनाते हैं ,यहीं पर खाते हैं फिर फुटपाथ पर ही सो जाते हैं।
उसने मुझे बताया कि हम लोगों की मजदूरी भी कोई निश्चित नहीं है,जब मैंने उससे पूछा कि तुम लोगों की इस समय दिहाड़ी कितनी है तो वह रोंदे अंदाज में बोलने लगा है तो 300 रुपया लेकिन अगर मंडी में खड़े रहे और कोई काम पर नहीं ले गया तो हम 200 रुपये पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं,फिर मैंने उससे पूछा कि कितने बजे तक काम करते हो उसने बताया सुबह 8:00 बजे से 5:00 बजे तक लेकिन हम लोगों को 6:00 बजे छोड़ा जाता है शायद इसी को कहते हैं बंधुआ मजदूर यहां पर मुझे महान philosopher,Economist,Sociologist कार्ल मार्क्स का वो विचार याद आया जो उन्होंने मजदूरों की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान देते हुए कहा था कि Workers of the world unite; You have to lose but your chains.(दुनिया के मजदूरों एकजुट हो जाओ;तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है,सिवाय अपनी जंजीरो के)। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा था कि यहां पर मजदूरों को बंधुआ मजदूर बनाकर रखा जाता लेकिन अगर एक संवेदनशील मनुष्य की तरह हम सोचना शुरू करें तो हमें यह नहीं लगता कि ये मजदूर ना होते तो क्या हमारा समाज जिस विकास की बात करता है क्या वह कर पाता क्योंकि मजदूर चाहे किसी भी क्षेत्र का हो,आर्थिक क्रियाकलापों में उसकी अग्रणी भूमिका होती है।एक मजदूर अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने का हुनर रखता है लेकिन क्या उसके हुनर को नजरअंदाज करना सही है।मजदूर भवन निर्माण के क्षेत्र में भरपूर योगदान देता है।वह ईंटे बनाता है,खेती में किसानों की मदद करता,तालाबों,कुओं,नहरों,झीलों की खुदाई में उसके श्रम का बहुत इस्तेमाल होता है।मजदूरों के लिए राज्य और केंद्र सरकार की ओर से समय समय पर कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की जाती है लेकिन इन सभी योजनाओं का लाभ किस स्तर तक हमारे आपके आसपास के ऐसे लोगों तक पहुंच रहा जिसकी इन्हें जरूरत है,यह एक प्रश्न है।
मजदूरों के श्रम का सम्मान होना चाहिए ,उनकी जीवन दशा में सुधार हो सके जिसके लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए;ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे उन्हें काम मिल सके और वह भी इस निरंतर होने वाले विकास रूपी कार्यों को अपने आसपास महसूस कर सके।

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