संजोई यादें बचपन की

बचपन एक ऐसी उम्र होती है जिसमें हम बगैर किसी तनाव,बिना किसी परेशानी के अपनी मस्ती में मस्त रहते हुए जिंदगी का धीरे-धीरे लेकिन एक अच्छे तरीके से आनंद लेते हैं।वो नन्हे होठों पर फूलों सी खिलती हंसी,मां के कोमल हाथों से मालिश,वो मुस्कुराहट,वो शरारत करना,लकड़ी की गाड़ी से चलते हुए बार-बार गिरकर फिर से संभलना,रूठना,मनाना,अपनी जिद पर अड़ जाना।यह सब बचपन की कुछ ऐसी यादें जिसे हर इंसान अपनी डायरी के उन पन्नों पर उकेरना चाहता है जिसको देखकर,पढ़कर सिर्फ आनंद की अनुभूति हो।सच कहें तो बचपन ही हमारा वो वक्त होता है जब हम इस दुनियादारी के झमेलों से दूर अपनी मस्ती में मशगूल रहते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि आज उन तमाम मां-बाप के बच्चों का वो बेखौफ बचपन कहीं खो गया है? आज बहुत से बच्चों के चेहरे पर मुस्कुराहट के बजाए उदासी व तनाव क्यों छाई रहती है?अपनी छोटी सी उम्र में पापा,दादी-दादा,नानी-नाना के कंधों की सवारी करने वाले बच्चे कंधों पर भारी बस्ता टांगे खचाखच भरी स्कूल बस की सवारी करते हैं। वो लम्हें बहुत याद आते हैं... कोई लौटा दो मेरे बचपन के दिन... स्कूल का वो बस्ता... जिंदगी के इस बोझ से... कहीं बहुत हल्का लगता था... एक समय होता था जब हम स्कूल से लौटकर आने के बाद बिना किसी दबाव या तनाव के निकल पड़ते थे मैदान की ओर वहां पर दोस्तों के साथ क्रिकेट,गुल्ली डंडा,पकड़म-पकड़ाई,खो-खो और गंदा खेल कहा जाने वाला कंचे का खेल भी खेला करते थे जो हमको एक तरह की आजादी का एहसास कराते थे।आज छोटी सी ही उम्र में नन्हों को प्रतियोगिता की दौड़ में शामिल करने के साथ ही उन पर सब को पिछाड़ते हुए आगे निकलने का अतिरिक्त दबाव भी डाला जाता है।इसी बेहतरी व प्रतियोगिता की कशमकश में नन्हों का बचपन कहीं खो सा जाता है।
बचपन एक ऐसा मधुर व सुंदर एहसास है जिसे हर कोई जीना चाहता है,बचपन के दिनों के खेल हों या फिर मिट्टी में गिरते-पड़ते पूरा दिन उसी मिट्टी में गुजार देना जिस मिट्टी का स्वाद हमसे अच्छा कोई नहीं जान सकता।वो चार लोगों को एक साथ घर के आंगन में बिठाकर चोर सिपाही का खेल हो या फिर जीरो(0)कट्टम(×) के खेल के साथ ही चिड़िया उड़,मैना उड़ और कुत्ता उड़ा दिए जाने पर हाथ पर मार ना खाने की जिद हो।
यह सभी खेल आज नई-नई तकनीकी से युक्त वीडियो गेम या मोबाइल में तो मिलते नहीं जिससे आज का बचपन तो दूर हो रहा इन सब से।बचपन का एहसास है जब हम भी अमीर हुआ करते थे जब पानी में हमारे जहाज चलते थे आज वह अमीरी कहीं खो सी गई है।
पहले के बच्चों के बचपन में बारिश के पानी में भीगकर उसी में छपर-छपर करना जैसे गुजरे जमाने की बात हो गई,आज तो कपड़ों की कीमत उस मस्ती के पल से कहीं ज्यादा हो गई। बचपन में वह सड़को गलियों में बुढ़िया के बाल बेचने वाले के पीछे भागते हुए बुढ़िया के बाल खाते हुए घर को आना थकावट से कहीं ज्यादा सुख का अनुभव कराती थी। बचपन के क्रिकेट नियम आज के क्रिकेट नियमों से कहीं ज्यादा सरल व समझने लायक थे,साइकिल के पहिए को लकड़ी से पीटते हुए उसके पीछे-पीछे भागना जिंदगी की दौड़ में भागने से आसान था।
वह एक रुपए की रंगबिरंगी स्वाद से भरपूर बर्फ को दो खंडों में बटवाकर मिल -बाट कर खाने में अलग ही मजा था।
आसमान में तारें गिनते हुए गिनती भूल जाने पर हर बार एक नया तारा बढ़ जाने पर दिमाग पर जोर लगाना कि यह कैसे हुआ?आज के बोझ से कहीं ज्यादा हल्का था।दादी,नानी के पास बैठकर घंटो ऐतिहासिक जानकारियां,छोटी-छोटी ज्ञानवर्धक कहानियां सुनना आज से कहीं ज्यादा हमको हमारे संस्कार और नैतिक शिक्षा का पालन करने में मददगार होती थी।
आज तो सुबह के बाद सीधे शाम होती है,वो सुबह के बाद दोपहर की धूप कहां जो लोगों को पेड़ की छांव में बैठकर खुली हवा का एहसास कराती थी।अब वह एक रुपए में चार टॉफी कहां जो हमको यह याद दिलाये कि एक रुपए में बहुत कुछ लिया जा सकता है।खो गई है वह बचपन वाली होली जब हाथों में पिचकारी लेते हुए पूरी टोली में हम भी खुशी-खुशी रंग लगवाने के लिए उतावले रहते थे लेकिन आज स्वयं ही एक सीमा रेखा का निर्धारण हो जाता है जो हमारे विवेक को तो दर्शाता है लेकिन खुशी को अंदर ही दबाता है। खैर,ना बीती हुई उम्र वापस आती है और ना ही वो होली वापस आएगी।बच्चे के रूप में रंग और गुलाल खेलने के मजे का बसेरा तो सिर्फ यादों में ही रह सकता है।
बचपन मेरा ऐसा बिता, जिसे नहीं मैं भूलना चाहता। यादों के झरोखों से, हर खुशी को हूं जीना चाहता। ऊंचे ऊंचे-ऊंचे पेड़ों पर गिरती वो बारिश की बूंदे। छप-छप करते हम भी पानी में, यादों के समुन्दर में लगाता हूं गोता।
जब-जब मैं जाऊं नदिया किनारे, ठहर जाता हूं फिर से यादों के सहारे। बचपन मेरा ऐसा बीता, जिसे नही मैं भूलना चाहता।
नही जानता था मैं बिक जाएँगी वो कॉपियां भी, जिन पर very good, star देखकर फूले हम ना समाते थे।
आई याद तेरी याद आई, ऐ बचपन फिर से मुझको तेरी याद आई। वो भागना दौड़ना,वो पकड़म-पकड़ाई, वो गर्मी की छुट्टियाँ,वो नींद की गहराई। आसमान में पतंगे भी खूब है उड़ाई, कागज की नाव पानी में हमने भी बहुत दौड़ाई। बारिश के पानी में भीगकर हमने भी खूब छलांग लगाई, दीवारों के पीछे छिपकर खूब है खेला छुपम-छुपाई। आई याद तेरी याद आई, ऐ बचपन फिर से मुझको तेरी याद आई।।

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